दूरकर पाखंड सारे, चल पड़ी ये बेटियां | इंसान है कि जो भूल थी, वह सुधारती हैं बेट दूरकर पाखंड सारे, चल पड़ी ये बेटियां | इंसान है कि जो भूल थी, वह सुध...
वर्तमान भारत की ज्वलंत समस्या को प्रश्न उठाती कविता..... वर्तमान भारत की ज्वलंत समस्या को प्रश्न उठाती कविता.....
सच तो है, कि मैं गुलाम हूं अपने दायरे में रुका, इक गुलाम हूं।। सच तो है, कि मैं गुलाम हूं अपने दायरे में रुका, इक गुलाम हूं।।
उसने कहा-रुक मैं तुझे मेरे पंख देता हूँ, उसने कहा-रुक मैं तुझे मेरे पंख देता हूँ,
उन्हें अपने अज्ञात शोषित होने कि समय सीमा का ज्ञात हो जायेगा। उन्हें अपने अज्ञात शोषित होने कि समय सीमा का ज्ञात हो जायेगा।
संस्कार की बेड़ियां पैरो में बांध के हर बेटी बैठ जाती है घरो में ! संस्कार की बेड़ियां पैरो में बांध के हर बेटी बैठ जाती है घरो में !